Sehat Ki Baat: अधिकतर लोग अधिक नींद आने या नींद न आने की समस्या (Sleep Disorder) को सामान्यतौर पर देखते हैं. नींद के प्रति लोगों का यह लापरवाह नजरिया जानलेवा भी साबित हो सकता है. दरअसल, नींद की यह समस्या कई बार आपको न केवल आपकी खराब लाइफस्टाइल (bad lifestyle) को सुधारने का संकेत देती है, बल्कि शरीर में गंभीर बीमारियों (Serious Diseases) की दस्तक की आहट भी देती है. समय रहते आपने अपनी ‘बीमार नींद’ पर ध्यान नहीं दिया तो आपको गंभीर खामियाजे भी भुगतने पड़ सकते हैं.
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी एण्ड रेस्पिरेटरी मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. एमएस कंवर के अनुसार, नींद की समस्या को नजरअंदाज करने वाले ज्यादातर लोग एंजायटी (घबराहट), डायबिटीज (मधुमेह), हाइपरटेंशन (उक्त रक्तचाप), डिप्रेशन (अवसाद) जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आते जा रहे हैं. वहीं, इन गंभीर बीमारियों की चपेट में आने के बाद भी आप अपनी ‘बीमार नींद’ को नजरअंदाज करते हैं तो हार्ट अटैक (Heart Attack) और ब्रेन स्ट्रोक (brain stroke) जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. फिर भी नहीं संभले तो ऑक्सीजन की कमी से मौत तक हो सकती है.
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कोविड के खौफ ने खराब की लोगों की नींद
डॉ. एमएस कंवर के अनुसार, बीते दो वर्षों में जिन कारणों से लोगों की नींद पर असर पड़ा, उसमें कोरोना का खौफ एक सबसे बड़ी वजह है. चाहे हम बात बुहान वेव की करें या फिर डेल्टा वेव की, दोनों ही वेव के दौरान लोग इस बात को लेकर तनाव में थे कि कहीं उन्हें या उनकी वजह से उनके परिजनों को कोविड न हो जाए. कोविड की बढ़ती मृत्युदर ने भी लोगों के खौफ को बढ़ा दिया. इस खौफ ने लोगों में स्ट्रेस पैदा हुआ. स्ट्रेस से एंजायटी (Anxiety) और एंजायटी की वजह से लोगों की स्लीप एफिशिएंसी और स्लीप क्वालिटी दोनों पर असर पड़ा, नतीजतन लोग डिप्रेशन (Depression) में भी चले गए.
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क्या है ओवर स्लीप? |
डॉ. एमएस कंवर के अनुसार, सामान्य तौर पर किसी भी व्यक्ति को सात से साढ़े सात घंटे की नींद आवश्यक होती है. ओवर स्लीप एक ऐसी कंडीशन में एक व्यक्ति रात में भी अच्छी तरह से सोता है और उसे दिन में भी नींद आती रहती है. |
डॉ. कंवर बताते हैं कि ओवर स्लीप स्लीप एप्निया, नार्कोलैप्सी और इडियोपैथिक हाइपरसोम्निया जैसी गंभीर बीमारी के लक्षण के तौर देखा जाता है. तीनों बीमारियां ब्रेन डिसऑर्डर की वजह से होती है. आमतौर पर इस तरह के लक्षण मोटापे और अधिक वजन से जूझ रहे लोगों में ज्यादा आते हैं.
स्लीप एप्निया: इस बीमारी को स्लीप स्टडी नामक टेस्ट के जरिए डायग्नोज किया जाता है. डायग्नोसिस के आधार पर तय किया जाता है कि मरीज को सीपैप लगाना है या फिर लाइफस्टाइल, डाइट में बदलाव और वजन कम करके मरीजा को ओवर स्लीप से निजात दिलाया जा सकता है. ओवर स्लीप के कुछ केसे में सर्जरी की जरूरत भी पड़ती है.
नार्कोलैप्सी: नार्कोलैप्सी को मल्टीपल स्लीप लटेंसी टेस्ट के जरिए डायग्नोज किया जाता है. डाइग्नोज कंफर्म होने पर मरीज लाइफ लांग नार्कोलैप्सी लेबल हो जाता है. नार्कोलैप्सी की स्थिति में मरीज को सुबह सात से आठ बजे के बीच एक गोली देनी होती है. इसका बस यही एक इलाज है.
इडियोपैथिक हाइपरसोम्निया: इडियोपैथिक हाइपरसोमनिया एक असामान्य नींद की बीमारी है, जिसके कारण रात में अच्छी नींद के बाद भी दिन में अत्यधिक नींद आती है. ब्रेन डिसऑर्डर से जुड़ी बीमारी का इलाज दवाओं के जरिए संभव है. इस बीमारी को नजरअंदाज करना मरीज के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है.
क्या है अंडर स्लीप? |
जब किसी व्यक्ति की नींद NREM स्टेप 1 और 2 में ही पूरी जो जाती है, उसकी स्थिति को अंडर स्लीप कहते हैं. इस स्थिति के लिए मेंटल डिसआर्डर के अलावा खराब लाइफस्टाइल जिम्मेदार हो सकते हैं. |
डॉ. एमएस कंवर के अनुसार, हमारी जिंदगी में कंप्यूटर, टेलीविजन और इंटरनेट के प्रवेश के बाद हमारी लाइफस्टाइल पूरी तरह से बदल गई है. जहां लोगों को रात दस से 11 बजे के बीच सो जाना चाहिए, वहां लोग देर रात तीन से चार बजे के बीच सोने जाते हैं. ऐसे लोगों के जगने का भी कोई हिसाब नहीं होता है. यदि कोई चार बजे सोया है तो उसे प्रॉपर स्लीप के लिए 12 बजे तक सोया रहना चाहिए. लेकिन, वह टाइम दुनिया के जगने का ज्यादा होता है, शोरशराबा ज्यादा होता है, डिसटर्बेंस के चलते उससे स्लीप की क्वालिटी उतनी रह ही नहीं जाती, जो रात में मिल सकती है. नींद न आने की वजह इनसोम्निया और साइको फिजियोलॉजिकल इनसोम्निया भी हैं, जिनका दवाओं से इलाज संभव है.
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इनसोम्निया: यह एक ऐसी कंडीशन है जिमसें इंसान सोने की कोशिश करता है, लेकिन उसे नींद नहीं आती है. नींद के लिए उसे दवाओं का सहारा लेना पड़ता है. इनसोम्निया के अंडरलाइन फैक्टर में एंजायटी, टेंशन, डिप्रेशन, प्रोफेशनल या फेमली टेंशन शामिल है.
साइको फिजियोलॉजिकल इनसोम्निया: जब किसी हादसे का गहरा प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ने की वजह से नींद आना बंद हो जाती है. ऐसी स्थिति को साइको फिजियोलॉजिकल इनसोम्निया कहा जाता है. ज्यादातर समय में समय के साथ सुधार आ जाता है. सुधार नहीं होने पर दवाओं, थेरेपी, लाइफस्टाइल में बदलाव और योग के जरिए इलाज संभव है.
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अंडर स्लीप से ज्यादा खतरनाक है ओवर स्लीप
डॉ. एमएस कंवर के अनुसार, एक बार हम अंडर स्लीप को नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन ओवर स्लीप को नजरअंदाज करना खतरनाक साबित हो सकता है. ऐसी स्थिति में, डायबिटीज, स्ट्रेस, हाइपरटेंशन, कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या बढ़ जाती है. इन संकेतों को नजरअंदाज करने पर हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. डॉ. कंवर ने बताया कि स्लीप एप्निया एक ऐसी कंडीशन है, जिसमें बॉडी में ऑक्सीजन बहुत ज्यादा गिर रही है. ऐसे स्थिति में मरीज की सोते समय मृत्यु भी हो सकती है. वहीं दिन में नींद आने के चलते ड्राइव करना बहुत खतरनाक हो जाता है. इसके अलावा, अंडर स्लीप की वजह से टेंशन, एंजायटी, डिप्रेशन के साथ साथ लंबी चलने वाली क्रोनिक डिजीज भी हो सकती हैं.
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