Ultrasound may cure Alzheimer’s : दुनियाभर के कई हिस्सों में औसत जीवन प्रत्याशा (Average Life expectancy) में बढ़ोतरी के कारण ज्यादा उम्र से जुड़ी कुछ बीमारियां भी बढ़ रही है. इसमें विकसित देशों में अल्जाइमर (Alzheimer’s) सबसे ज्यादा कॉमन है. क्योंकि इसका अभी कोई इलाज नहीं मिला है. इसलिए कोशिश ये होती है कि इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के तरीके खोजे जाएं. साउथ कोरिया के ग्वांगजू इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Gwangju Institute of Science and Technology) यानी जीआईएसटी (GIST) के साइंटिस्टों द्वारा की गई एक स्टडी में इसके इलाज की नई उम्मीद जगी है. इस स्टडी में साइंटिस्ट ये दर्शाने में कामयाब हुए हैं कि अल्जाइमर से निपटने के लिए अल्ट्रासाउंड आधारित गामा एंट्रेनमेंट (gamma entrainment) मददगार हो सकता है. इस तकनीक में किसी व्यक्ति (या पशु) के ब्रेन वेव्स (brain waves) को 30 हर्ट्ज (30 Hz) से ज्यादा किया जाता है, जिसे गामा वेव्स (gamma waves) कहते हैं. ये काम बाहरी दोलन आवृत्ति (oscillation frequency) से समेकित किया जा सकता है. ये प्रोसेस स्वाभाविक रूप से किसी कारक को दोहराए जाने वाले उद्दीपन (stimulus), जैसे साउंड, लाइट या यांत्रिक कंपन (mechanical vibration) के जरिए की जा सकती है. चूहों पर पहले की गई स्टडीज में पाया गया है कि गामा एंट्रेनमेंट (Gamma Entrainment) बी-एमिलाइड (Bi-amylide) की परत जमने और टाउ प्रोटीन (tau protein) को जमा होने से रोकने में कारगर साबित होता है. ये दोनों ही अल्जाइमर के प्रतीक माने जाते हैं.
इस स्टडी का निष्कर्ष ट्रासंलेशन न्यूरोडिजेनरेशन (Translational Neurodegeneration) में प्रकाशित किया गया है. जीआईएसटी (GIST) के साइंटिस्टों की टीम ने अपनी ताजा रिसर्च स्टडी में बताया है कि अल्ट्रासाउंड के 40 हर्ट्ज की मदद से गामा एंट्रेनमेंट को महसूस किया जा सकता है. इस विधि की खासियत उसके इस्तेमाल का तरीका है.
क्या कहते हैं जानकार
इस स्टडी के को-राइटर और जीआईएसटी में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर जेई ग्वान किम (Jae Gwan Kim) ने बताया कि अन्य गामा एंट्रेनमेंट तरीकों (जो साउंड या टिमटिमाती प्रकाश पर निर्भर करते हैं) की तुलना में अल्ट्रासाउंड बिना किसी जख्म और संवेदी तंत्र (sensory system) को नुकसान पहुंचाए ही ब्रेन में प्रवेश कर सकता है. इसके लिए अल्ट्रासाउंड आधारित ये तरीका ज्यादा सुविधाजनक है.
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साइंटिस्टों ने अपने प्रयोग में पाया कि चूहे को दो सप्ताह तक रोजाना दो घंटे अल्ट्रासाउंड पल्स के सामने रखने से ब्रेन में बी-एमिलाइड की परत और टाउ प्रोटीन की मात्रा में कमी आई. इसके अलावा इलेक्ट्रोइन्फैलोग्राफिक विश्लेषण में ये भी पाया गया कि उन चूहों के ब्रेन के कामकाज में सुधार हुआ. इसका मतलब ये कि तंत्रिकाओं की कनेक्टिविटी को भी फायदा हुआ. इतना ही नहीं, इस प्रक्रिया में किसी प्रकार माइक्रोब्लीडिंग (ब्रेन हेमरेज) भी नहीं हुआ. इससे ये संकेत मिलता है कि ब्रेन के टिशूज को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ.
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स्टडी में क्या निकला
स्टडी का निष्कर्ष ये है कि इससे अल्जाइमर के इलाज के लिए नया रास्ता खुल सकता है. इसका कोई साइडइफैक्ट भी नहीं है. इसके साथ ही अल्जाइमर से जुड़ी अन्य स्थितियों से भी बचाव हो सकता है. डॉ किम ने बताया कि हमारे इस एप्रोच से जहां बीमारी के बढ़ने की स्पीड को कम करके मरीज के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है, वहीं पार्किंसंस (Parkinson’s) जैसी तंत्रिकाओं के क्षय वाली (neurodegenerative diseases) अन्य बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है.
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