हाइलाइट्स
शोधकर्ताओं ने कोरोना वैक्सीन लगाने के बाद ब्लड कैंसर के मरीजों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता का पता लगया है.
शोधकर्ता ब्लड कैंसर में वैक्सीन के फायदे देखकर हैरान हैं
Covid vaccine protect from blood cancer: कोरोना ने एक बार फिर से तबाही मचाना शुरू कर दिया है. जो लोग कोविड की बूस्टर डोज नहीं ली है, उन्हें बूस्टर डोज लगाने को कहा गया है. इसी बीच ब्लड कैंसर के मरीजों में कोरोना वैक्सीन के एक अन्य फायदे से वैज्ञानिक हैरान है. शोधकर्ताओं की एक टीम ने कोरोना वैक्सीन लगाने के बाद ब्लड कैंसर के मरीजों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता का पता लगया है. दरअसल, ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों का इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर हो जाता है. इस स्थिति में अगर उन्हें कोरोना संक्रमण होता है तो उसकी बीमारी बहुत गंभीर हो जाती है. वहीं कुछ अन्य तरह के कैंसर के मरीजों में कोविड-19 की वैक्सीन लगने के बाद कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी बनती ही नहीं है या बनती भी है तो बहुत कम बनती है. लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया है कि ब्लड कैंसर के मरीजों में वैक्सीन लगने के बाद टी सेल्स सक्रिय कर हो जाता है. टी सेल्स के कारण लंबे समय तक इम्यूनिटी बनी रहती है.
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टी सेल्स की सक्रियता बढ़ जाती है
एचटी की खबर के मुताबिक शोधकर्ताओं ने ब्लड कैंसर के मरीजों में इम्यूनिटी की की पड़ताल करने के लिए एलएमयू म्यूनिख के वायरोलॉजिस्ट प्रो. ओलिवर टी केपलर, यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रेबर्गाड की डॉ क्रिस्टिनी ग्रेल और फिजिशियन डॉ एड्रियाना केपलर के नेतृत्व में एक अध्ययन किया गया. इस अध्ययन में ब्लड कैंसर के मरीजों में कोरोना की तीन वैक्सीन लगने के बाद उसके खून की जांच की गई. जांच के बाद पाया गया है कि ब्लड कैंसर के मरीजों में कोरोना के कारण होने वाली गंभीर जटिलताओं से लड़ने की क्षमता विकसित हो गई. स्टडी में ब्लड कैंसर के दो रूपों बी सेल लिंफोमा और मल्टीपल मायलोमा पर विश्लेषण किया गया. डॉ एंड्रिया ने बताया कि हमारे अध्ययन में ब्लड कैंसर से पीड़ित सभी प्रतिभागियों में कोविड वैक्सीन से मजबूत टी सेल्स की प्रतिक्रिया देखी गई. शायद यही कारण था कि ब्लड कैंसर के मरीजों में कोरोना वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना होने पर भी बहुत हल्के या मध्यम लक्षण देखे गए जबकि उन लोगों में पहले से कोई एंटीबॉडी विकसित नहीं हुआ था.
एंटीबॉडी की गुणवत्ता भी बेहतर
शोधकर्ताओं ने वैक्सीनेशन के बाद ब्लड कैंसर के मरीजों में एंटीबॉडी की गुणवत्ता का भी विश्लेषण किया. यह विशेष रूप से एंटीबॉडी और वायरल स्पाइक प्रोटीन के बीच के बंधन की ताकत पर निर्भर करता है. शोधकर्ताओं ने पाया कि एंटीबॉडी में सार्स-कोव-2 के विभिन्न वैरिएंट को न्यूट्रिलाइज्ड करने की शक्ति है. वैज्ञानिकों ने ब्लड कैंसर के मरीजों और स्वस्थ मरीजों में स्पाइक प्रोटीन और टी सेल्स की प्रतिक्रियाओं और एंटीबॉडी की गुणवत्ता का तुलनात्मक अध्ययन किया. शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन मरीजों का शरीर खुद ही एंटीबॉडी बनाने में सक्षम था, उनमें एंटीबॉडी की गुणवत्ता बहुत अधिक थी. वैक्सीन की दूसरी डोज लगाने के बाद इनमें सार्स-कोविड 2 के विभिन्न स्वरूपों को निरस्त करने की क्षमता विकसित हो गई. शोधकर्ताओं ने पाया कि स्वस्थ लोगों वैक्सीन लगने के बाद एंटीबॉडी की जितनी गुणवत्ता रहती है, उससे कहीं अधिक ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों में यह गुणवत्ता देखी गई.
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Tags: Health, Health tips, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : December 25, 2022, 16:04 IST
