Dog Bite-Anti-Rabies Vaccine: कुत्ता या बिल्ली पालने का शौक बहुत सारे लोगों को होता है. कई बार आपने लोगों को सड़क पर आवारा कुत्तों की देखभाल करते भी देखा होगा. यह मानवता के लिहाज से बहुत अच्छा है लेकिन पिछले कुछ दिनों से सड़क पर घूमते आवारा कुत्ते हों चाहे पालतू डॉग्स, इनके काटने के मामले तेजी से बढ़े हैं. इनकी वजह से लोगों में खतरनाक रेबीज का खतरा पैदा हो जाता है. ऐसे में डॉग बाइट या कैट बाइट के संक्रमण को रोकने के लिए एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाई जाती है लेकिन क्या आपको मालूम है कि एंटी रेबीज के कितने इंजेक्शन लगवाना जरूरी है? अगर आप एक भी डोज लेना भूल गए या समय पर नहीं ली तो इसका आपकी सेहत पर क्या असर हो सकता है. तो, आईए एक्सपर्ट से जानते हैं.
दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सागर बोरकर का कहना है कि अस्पतालों में रोजाना डॉग बाइट के सैकड़ों मरीज एंटी रेबीज टीका लगवाने और इलाज करवाने के लिए पहुंच रहे हैं. कुत्ते के काटने के कई केस तो इतने गंभीर हैं कि उन्हें एंटी रेबीज इंजेक्शन या वैक्सीन के साथ ही एआरएस यानि एंटी रेबीज सीरम भी देना पड़ रहा है. ताकि वैक्सीन का असर होने तक मरीज में रेबीज के वायरस के खिलाफ पैसिव इम्यूनिटी बन सके. पेट एनिमल बाइट चाहे कम हो या ज्यादा, एंटी रेबीज का टीका लेना बेहद जरूरी है, ताकि रेबीज की संभावना खत्म की जा सके.
बहुत पहले कुत्ता, बिल्ली के काटने पर एंटी रेबीज के 9 टीके लगते थे. डॉ. सागर कहते हैं कि ये सभी टीके पेट पर लगते थे. अब तो एंटी रेबीज टीकों की बहुत एडवांस टैक्नोलॉजी आ गई है. अब रेबीज ह्यूमन डिप्लोइड सेल वैक्सीन (Rabies human diploid cell vaccine), वैरो सैल वैक्सीन (Vero cell rabies vaccine) मौजूद हैं. इन वैक्सीन के माध्यम से वायरस की बहुत थोड़ी मात्रा शरीर में छोड़ी जाती है ताकि शरीर में इम्यूनिटी डेवलप हो सके.
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ये वैक्सीन दो तरह से लगती हैं इंट्रामस्कुलर यानि हाथ की मांसपेशियों के अंदर और इंट्राडर्मल यानि स्किन की एक लेयर के अंदर. इनमें भी इंट्राडर्मल वैक्सीन ज्यादा प्रभावी है क्योंकि यह कम मात्रा में दी जाती है और उतना ही असर करती है जितना कि इंट्रामस्कुलर वैक्सीन. मान लीजिए किसी को 1 एमएल इंट्रामस्कुलर वैक्सीन दी जाती है लेकिन अगर किसी को .1 एमएल इंट्राडर्मल वैक्सीन दोनों हाथों पर दे दी जाए तो वह भी उतनी ही इम्यूनिटी बनाती है. इसके साथ ही यह सभी से सस्ती भी है, इससे प्रति डोज लागत भी कम पड़ती है.
डॉ. बताते हैं कि फिलहाल एनिमल बाइट पर जो वैक्सीन दी जाती हैं वे पहले दिन से 28 दिन के बीच में दी जाती हैं. इंट्रामस्कुलर वैक्सीन की 5 डोज दी जाती हैं. ये डोज काटने के तुरंत बाद, तीसरे, सातवें, 14वें और 28 वें दिन पर दी जाती है. वहीं फिलहाल अस्पतालों में दी जा रही एंटी रेबीज इंट्राडर्मल वैक्सीन की 4 डोज दी जाती हैं. इसकी डोज 0, तीसरे, 7वें दिन और 28 वें दिन पर जाती है. इन वैक्सीन से इम्यूनिटी विकसित होने में 7-14 दिन का समय लगता है. ऐसे में कई बार गंभीर रूप से काटे जाने पर मरीज को एआरएस यानि एंटी रेबीज सीरम भी दिया जाता है जो वैक्सीन के असर तक शरीर में पैसिव इम्यूनिटी बनाता है.
डॉ. कहते हैं कि एंटी रेबीज का टीका सामान्य टीकाकरण अभियान के टीकों से अलग है. यह वैक्सीन बचपन में या पहले से प्रीकॉशन के तौर पर नहीं लगाई जाती है. एंटी-रेबीज वैक्सीन सिर्फ कुत्ते, बिल्ली, बंदर आदि जानवरों के काटने के बाद ही लगाई जाती है. वैक्सीन लगने के बाद यह वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाती है.
कई बार लोग डॉग बाइट के बाद पहला या दूसरा टीका तो लगवा लेते हैं लेकिन उसके बाद भूल जाते हैं या अस्पताल नहीं पहुंच पाते, हालांकि ऐसा कम ही होता है. डॉ. बोरकर कहते हैं कि आमतौर पर एंटी रेबीज वैक्सीन की पहली-दूसरी और तीसरी डोज में पर्याप्त इम्यूनिटी बन जाती है. अगर घाव कम है और अगली डोज नहीं भी लगवाई है तो कोई नुकसान नहीं होता, यहां तक कि खुद डॉक्टर भी मरीज की हालत देखने के बाद चौथी डोज के लिए मना कर देते हैं. हां लेकिन अगर जानवर के काटने के बाद वैक्सीन लगवाते ही नहीं हैं तो वह नुकसानदेह ही नहीं बल्कि घातक है. इससे रेबीज होने और उससे मौत होने का खतरा होता है.
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FIRST PUBLISHED : March 16, 2023, 20:20 IST
