इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में बढ़ी कॉपर की मांग
एक अंग्रेजी मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो क्रिसिल रिसर्च की निदेशक हेतल गांधी ने कहा, ‘कॉपर इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में तेजी आने से ऑटो सेगमेंट से कॉपर की मांग में तेजी आई है। ये वर्तमान में भारत के कुल कॉपर का लगभग 1.1 मिलियन टन प्रति वर्ष की मांग का करीब 10 फीसदी के करीब है। उम्मीद की जा रही है कि नवीकरणीय ऊर्जा और ऑटोमोटिव सेक्टर में बढ़ती मांग 2030 तक दो मिलियन टन से अधिक हो सकती है। इसके लिए भारत का 2030 तक 450 GW से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और यात्री वाहनों में 30% EV पैठ प्राप्त करने के ट्रैक पर बना रहे।’
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तूतीकोरिन प्लांट के बंद होने से बढ़ा आयात फीसदी
Hindalco, वेदांता और HCL प्राथमिक तौर पर कॉपर का प्रोडक्शन करते हैं, लेकिन वर्ष 2018 में वेदांत तूतीकोरिन प्लांट के बंद होने के कारण कॉपर के प्रोडक्शन में भारी कमी आयी है और इस वजह से आयात भी बढ़ा है।
वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत के कॉपर आयात में 13.2 फीसदी का इजाफा हुआ था। तूतीकोरिन प्लांट के कारण वर्ष 2013 के बाद से भारत में कॉपर का प्रोडक्शन करीब 10 प्रतिशत की दर से बढ़ा था जो वर्ष 2019 में यह उत्पादन अचानक से करीब 46 प्रतिशत कम हो गया था। तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट प्लांट के कारण पहले देशभर में कुल 10 लाख टन कॉपर का प्रोडक्शन होता था।
हालांकि, अडानी ने 11,000 करोड़ रुपये के निवेश से 1 हज़ार किलो टन के कॉपर की फैक्ट्री के लिए पर्यावरण की मंजूरी प्राप्त की थी। ये प्लांट आने वाले 3-4 सालों में चालू हो जाएगा। भले कॉपर प्रोडक्शन तब बढ़ेगा परन्तु इसके बावजूद भारत की कॉपर पर निर्भरता बढ़ेगी। ऐसे देश में कॉपर प्रोडक्शन को बढ़ाया जाना आवश्यक है ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके। कुल मिलाकर देखें तो भारत की कॉपर पर निर्भरता और बढ़ जाएगी और भारत के आयात में वृद्धि होने वाली है।
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